ज़रा गौर से सुन्ना, कुछ कहना है…यह कहना है की दर्द इतना है,
सफ़ेद बर्फ की चादर पर, वह लाल रख्त भी अपना है, वह लाल रख्त भी अपना है – दर्द इतना है।
वहा खून का हर एक कतरा, यहाँ आसूं बन कर बहता है,
जो चीर गए जवानो का वह सांस आखरी कहता है,
तुम जान हमारी ले गए पर ईमान यही पर रहता है, ईमान यही पर रहता है।
बेबस मुखौटा, वीर हमारा, चेहरे पर ना ओढ़ेगा,
इंडस, झेलम, चेनाब हमारा – अपना रुख भी मोड़ेगा।
जो चीन की सस्ती उधार पर – अपना जीवन चलाता है,
पीठ पीछ वह वार कर, कायर ही कहलाता है।
शहादत की सलामी पर – कंधे कभी न झुकते है,
शर्म करो वह कर्म तुमहारा, बातो से न छुप्ते है।
प्रश्न सीमा पार घुसकर, तुमने जो यह पूछा है,
उत्तर सीमा पार करके, हम तुम्हे भी दे देंगे।
आतंक के इस दल-दल में, साहस का कमल खिलाएंगे,
स्वच्छ भारत के अंतर्गत – इस गन्दगी को मिटायेंगे।
यह नए दौर का भारत है, यह इन्साफ दिलाएगा,
जो मिटटी में मिलाने आये, उनको मिटटी में मिलाएगा।
और आखरी चार पंक्तिया उन् वीर जवानो को समर्पित है
अमर ज्योति की ज्वाला में – लॉ कभी न कम होगा,
भारत माँ की सुरक्षा में – बलिदान कभी न व्यर्थ होगा।
देश द्रोहियो का हिसाब, हम भी खूब लगाएंगे,
मूल में जोड़े ब्याज समेत, हम वापिस चुकाएंगे, हम वापिस चुकाएंगे।
प्रतीक रामपुरिया